शुक्रवार, 12 मार्च 2010

लघुता बोध

संत महात्माओं द्वारा प्रमाणिक मानवीय जीवन की साधना है | बड़े होकर भी विनम्रता की साक्षात् मूर्ति बनकर जीवन का आनंद लेना,संत संस्कार के बिना संभव नहीं | नव गठित छतीसगढ़ प्रदेश के निवासियों के विषय में यह बात प्रचलित है कि यहाँ लोगों में स्वाभिमान की बेहद कमी है | वे कभी गलत बातों का विरोध करते नहीं दिखाई देते |छतीसगढ़ राज्य निर्माण के बाद तो स्थिति और भी ख़राब होने लगी |कोई कुछ भी करले छतीसगढ़ राज्य में सबका स्वागत है | डाकू आकर बैंक लूट कर ट्रकों में नोट भरकर चले जाते हैं | हत्यारे आराम से हत्या करके गायब हो जाते हैं | न सरकार को खबर लगती, और न ही जनता हाय-तौबा करती | राज्य बनने के बाद जमीन खरीदने वालों की जमात न जाने कहाँ-कहाँ से आकर छतीसगढ़ के शहरों से लेकर गांवों तक पसर गये पता ही नहीं चला? जिधर देखो उधर धुआं उगलते कारखाने धुल उड़ाती चिमनियाँ सर उठाए हैं | खेती किसानी चौपट है| पैसों के लालच में हमारे किसान खेत जमीन बेंच कर "धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का "जैसी कहावत को चरितार्थ करने लगे हैं | छतीसगढ़ धनागार धरती है |यहाँ के निवासियों में भूखों को खिलाने के बाद खाने की संस्कृति है | यहाँ गरीबी है, भूखमरी नहीं | अचानक छतीसगढ़ में भूखों और भिखारिओं की फौज कैसे बढ़ गयी ? राज्य निर्माण के बाद शासन को संवेदना प्रदर्शन के लिए १,२ रुपये में चावल देना पड़ रहा है | लाखो की संख्या में गरीबी के नीचे जीवनयापन करने वालों की पहचान अब हो रही है? छतीसगढ़ के लोगों में स्वाभिमान तो होता नहीं , जो थोडा बहुत है उसे भी गरीबी रेखा के नीचे लाकर ख़त्म किया जा रहा है | सरकारी तंत्र इस सस्ता चावल बाँट योजना से वाह-वाही भले लूट ले परन्तु यह छतीसगढ़ के लोगों के लिए,नई पीढी के लिए खतरनाक है |भीख से या दया से कोई कौम प्रगति नहीं कर सकती, उसे तो काम चाहिए | कोई भूखा न रहे यह सोचबहुत अच्छा है परन्तु गरीबों को खुले आम दया का पात्र बनाना लाखों गरीबों को सभा बीच नाम मात्र रुपये में चावल बाँटने जैसा सदावर्त आयोजन, छतीसगढ़ियों के लिए डूब मरने वाली बात है | छतीसगढ़ के लोगों को राज्य बनने के बाद यह दिन देखना पड़ रहा है, इससे बड़ा दुर्भाग्य , धान उगाने वालों के लिए और क्या हो सकता है |श्रमिकों को ऐसा उपहार देना क्या उचित है| छतीसगढ़ के लोगों के साथ कुछ भी हो जाये वे उफ़ तक नहीं करते | कैसी विडंबना है | अब तो प्रायः हर व्यक्ति गरीबी रेखा के नीचे नाम लिखाने लाइन में खड़ा है | अब तो नया गणित शुरू हो गया है, चावल खरीदो और बेच कर, कुछ गम गलत करने वाली दवा खरीद लो | जिन्हें उनकी समझ में आने वाली भाषा में,कभी स्वाभिमान की शिक्षा नहीं दी गई, उन्हें क्या पता स्वाभिमान,मन,सम्मान,आत्म गौरव किस चिड़िया का नाम है |सहज भोजन उपलब्ध होने से शेर भी कायर हो जाता है, मनुष्य की क्या बिसात है ? [लोकसुर छतीसगढ़ कला संस्कृति एवं साहित्य की मासिक पत्रिका के प्रवेशांक में सम्पादकीय ]

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